Wednesday, January 20, 2010

आर.टी.आई का आवेदन तैयार करते समय...

एक बात तो है कि आर.टी.आई कानून के अंतर्गत आवेदन करने से पहले हमें जिस बात की जानकारी चाहिये उस के बारे में अच्छे से विचार कर लेना चाहिये और बढ़िया होता है अगर हम लोग प्वाईंट बना कर किसी विषय पर जानकारी की मांग करते हैं। कितने प्वाईंट बना सकते हैं? ---ऐसी कोई शब्द सीमा अभी तक तो कानून में तय है नहीं, अभी मैंने एक सप्ताह पहले ही एक आवेदन भेजा है जिस में मैंने 20 प्वाईंट के अंतर्गत सूचना मांगी है।


हां, तो बात हो रही थी कि आवेदन करते समय प्रश्न अच्छे ढंग से पूछने की। यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि देखिये, हम लोग जिस जानकारी को भी प्राप्त करना चाहते हैं उसे पाने में हमें महीनों लग सकते हैं और ध्यान से देखा जाए तो लगते भी हैं। एक महीने की समय सीमा है तो लेकिन अकसर उस दौरान वांछित सूचना पाना मुझे तो लगता है इतना मुमकिन सा है नहीं, या हो सकता है कि मेरा अनुभव ऐसा रहा हो, इसलिये हर किसी के अनुभव अलग हो सकते हैं।


मैं कह रहा हूं कि सूचना पाने में कईं बार महीनों लग जाते हैं --- लेकिन यह सोच कर किसी तरह से हतोत्साहित होने से कैसे चलेगा ? अगर आप को किसी तरह की सूचना चाहिये तो भाई चाहिये, इस के लिये जितना भी इंतज़ार करना पड़े, ठीक है !! इसलिये मैं सोचता हूं कि शुरू से ही आवेदन बड़ा सोच-विचार कर किया जाये ताकि जहां तक हो सके जिस विषय के बारे में हम लोग कुछ जानना चाहते हैं उस से संबंधित कोई बिंदु छूट न जाए ---लेकिन इतनी कोई टेंशन वाली 
बात भी नहीं है, एक नया आवेदन कर के और भी कुछ पूछा जा सकता है।


हां, तो एक सूचना के लिये कईं बार महीनों कैसे लग सकते हैं? ---चलिये, एक उदाहरण से देखते हैं। मान लीजिये मैं किसी केंद्रीय जन सूचना अधिकारी को कोई आवेदन करता हूं --- और मुझे उसे भेजने के बाद लगभग एक-सवा महीना तो जवाब का इंतज़ार करना ही पड़ेगा। तो लीजिये आ गया जवाब कि अमुक सूचना फलां फलां कारणों से नहीं दी जा सकती।
जिस दिन मुझे यह जवाब मिला –उस दिन से लेकर आगामी तीस दिनों  तक मैं इस के बारे में आर टी आई के अपीलीय अधिकारी से अपील कर सकता हूं कि मैं केंद्रीय जन सूचना अधिकारी की बात से सहमत नहीं हूं...और भी जो बात मैं अपने दावे के पक्ष में कहना चाहता हूं, मैं लिख कर उस अपील को भेज देता हूं। आप देखियेगा प्रैक्टीकल स्वरूप में यह अपील हम लोग यह नहीं कि जन सूचना अधिकारी का पत्र आते ही कर देते हैं। हां, वो बात अलग है कि अगर मुद्धा काफ़ी गंभीर है तो हम लोग दो-तीन दिन में अपील कर ही देते हैं। लेकिन अकसर बीस-पच्चीस दिन के बाद ही हम ऐसी अपील भेजते हैं।


और इस अपीलीय अधिकारी ( Appellate authority) को भेजी पहली अपील भेजने के बाद एक महीने तक हम लोग इस के जवाब की इंतज़ार करते हैं। जवाब आने पर –अगर यह जवाब हमें संतोषदायक नहीं लगे, अधूरा लगे या अगर यह जवाब तीस दिन तक हमारे पास पहुंचे ही ना तो हम इस की अपील सूचना आयोग में कर सकते हैं। अगर आप राज्य के जन सूचना अधिकारी के विरूद्ध अपील करना चाह रहे हैं तो राज्य के सूचना आयोग में करनी होती है और यह अपील अपीलीय  अधिकारी के जवाब मिलने के 90 दिन के अंदर की जा सकती है। और फिर सूचना आयोग के लिये कोई समय सीमा नहीं है कि उस ने कितने समय के अंदर इस का निर्णय करना है।


रास्ता लगता तो थकाने वाला ---लेकिन आप यह भी तो देखिये कि पहले लोग छोटी छोटी जानकारी के लिये तरसते रहते थे --- सब कुछ गुपचुप चलता था, आज इस देश का कोई भी नागरिक किसी भी विभाग से कुछ भी पूछ ले। मुझे अकसर तब बड़ी चिढ़ होती है जब लोग यह कहते हैं कि कुछ लोग इस कानून का गलत इस्तेमाल करते हैं ----मुझे इस में यह आपत्ति है कि जिस देश के लोगों ने कभी प्रश्न ही न पूछे हैं तो अगर उन्हें कोई नई नई बात पता चली है तो यहां वहां से कुछ जानकारी हासिल करना चाह रहे हैं तो इस में आखिर क्या आफ़त है , सीख जाएंगे धीरे धीरे ---- मैं अकसर कुछ सरकारी वेबसाइटों पर आवेदकों के हिंदी में हस्तलिखित आवेदन देखता हूं तो मुझे बहुत इतमीनान सा हो जाता है ----जानने वाले ठीक ही कहते हैं कि यह कानून मात्र एक कानून नहीं है, भाईयो, यह तो प्रजातंत्र की आक्सीजन है ( RTI is oxygen for democracy) ----क्या आप मेरी बात से सहमत हैं ?

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